अध्याय २

ब्रह्मांड ने १४ अरब साल पहले विकास करना शुरू किया था. ऐसा कहा जाता है कि प्रसिद्ध बिग बैंग ने ब्रह्मांड बनाया- एक अत्यंत बड़ा ब्रह्मांड. और इसलिए, यह ब्रह्मांड ९३ अरब प्रकाश वर्ष के व्यास वाला एक अकल्पनीय विशाल अवकाश बन गया. इसके अलावा इसमें प्रकाश की गति से भी तेज दर से और भी विस्तार करने की क्षमता है.

इन १४ अरब वर्षों में ब्रह्मांड में अनगिनत सितारों और ग्रहों के निर्माण के बावजूद अचरज यह है कि केवल दो ग्रहों पर ही जीवन पाया जाता है. ये ग्रह हैं- पृथ्वी और बर्थ. आश्चर्य की बात यह है कि दोनों ग्रह लगभग हर चीज में हर तरह से समान हैं. उन पर जीवन के विकास की समयरेखा, उनके वातावरण और सबसे महत्वपूर्ण- दोनों ग्रहों पर मानव प्रजातियों का अस्तित्व. यह भी बहुत ही रोचक और आश्चर्यजनक है कि दोनों ग्रहों पर विकसित भाषाएँ और संस्कृतियाँ भी लगभग समान हैं.

पृथ्वी और बर्थ की आयु ४.५ से ५ अरब वर्ष अनुमानित है. वर्तमान में दोनों ऐसे वातावरण के साथ संपन्न हैं जो जीवन के लिए अनुकूल है. फिर भी पृथ्वी और बर्थ पर जीवन उनके निर्माण के बहुत लम्बे काल बाद आया. प्रारंभ में इन दो ग्रहों ने ६,००० लाख वर्ष पहले सामान्य और सरल जमात के जानवरों को जन्म दिया. और बाद में आधुनिक मनुष्य २००,००० साल पहले अस्तित्व में आए.

दोनों ग्रहों पर मानव जैसे प्राणियों ने लगभग समान गति और क्रम में प्रगति की. जैसे जैसे काल बीतता गया वे अधिक बुद्धिमान और क्रूर हो गए और जल्द ही जीवों के सभी अन्य रूपों और प्रजातियों पर नियंत्रण कर लिया. ऐसा करने में वे एक साथ थे और एकजुट थे.

परन्तु समय बीतने के साथ जैसे वे आश्वस्त हो गए कि अन्य जानवरों और वनस्पतियों से उन्हें कोई खतरा नहीं है तब उन्होंने एक-दूसरे पर ही संदेह करना शुरू कर दिया. उनकी एकता में दरार पढ़ना शुरू हो गई. उनका लालच और स्वार्थ उभरकर सामने आने लगा. उनमें से कइयों ने तिकडमी योजनायें बनाना शुरू कर दीं. शक्तिशाली लोगों ने और खासकर उनमें से चालाकों ने कमजोरों का शोषण करना शुरू कर दिया. उन्होंने उन लोगों का भी शोषण किया जो लालच के प्रति उदासीन थे और जो भी उनके पास था उससे संतुष्ट थे.

जल्द ही कुछ शक्तिशाली, योजनाबद्ध, तिकडमी और चालाक लोगों ने आपस में साँठ-गाँठ कर ली और एक साथ होकर बर्थ की बाकी प्रजातियों पर पूरा आधिपत्य और नियंत्रण कर लिया. उन्होंने शासन करना शुरू कर दिया. जल्द ही उन्होंने उन लोगों की संपत्ति छीनना शुरू कर दी जिन्हें उन्होंने सभी प्रकार की अत्यधिक स्मार्ट चालों से नियंत्रित कर रखा था. जहाँ उनकी स्मार्ट चालें काम नहीं करतीं थीं वहाँ उन्होंने अपनी क्रूरता का प्रयोग किया. अब अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिये गये इन हारे हुए हताश लोगों ने अपने अस्तित्व के लिए शक्तिशाली लोगों से दया की भीख मांगना शुरू कर दी. तो इस तरह मानव प्रजाति दो वर्गों में विभाजित हो गई- शासक और शासित.

यह घटना ग्रह के विभिन्न क्षेत्रों में एक साथ हो रही थी. अब तक प्रत्येक क्षेत्र में लोग शासक और शासित इन दो विभागों में बट चुके थे. बाद में इन क्षेत्रों को अलग-अलग देशों के रूप में जाना जाने लगा. इन देशों को अलग-अलग नाम दिये गये.

यदि ७,९१८ मील व्यास वाली पृथ्वी पर १९६ क्षेत्र या १९६ देश हैं तो बर्थ ग्रह के देशों की संख्या भी इसी के आस-पास है.  बर्थ का व्यास ६,५७६ मील है. यह ग्रह पृथ्वी की तुलना में थोड़ा छोटा है. इस पर १३८ देश हैं.

शक्तिशाली, पैसेवाले, योजनाबद्ध, चालाक और क्रूर लोगों ने अब बर्थ के सभी १३८ देशों पर अपना शासन जमा लिया था. इन १३८ देशों में सरकार बनाने की विभिन्न युक्तियाँ अर्थात राजतंत्र, तानाशाही, साम्यवाद, लोकतंत्र इत्यादी की कोशिश की गई थी. किन्तु इन सभी तरीकों या चालों ने अंततः इन देशों में से अधिकांश में शीर्ष सरकारी पदों के लिए अति दुष्ट राजनेताओं को ही स्थापित किया.

फिर इन दुष्ट राजनेताओं ने अपने चमचों, सहयोगियों और भागीदारों को यानी पावर दलालों, लॉबीवादियों, नौकरशाहों, कॉर्पोरेट लीडरों, मीडिया प्रमुखों, सैन्य प्रमुखों और यहाँ तक ​​कि न्यायाधीशों को मनमानी रेवड़ियाँ लुटाई. एक हरामियों की टोली दूसरे हरामियों की टोली के साथ सेटिंग कर चुकी थी. दोनों टोलियों को अपना-अपना अस्तित्व कायम रखने के लिये एक दूसरे की जरूरत जो थी.

ये धूर्त और नीच लोग, हालाँकि कुल आबादी के लगभग १% ही थे, पर अब, ग्रह बर्थ की बाकी ९९% आसानी से चकमों में आ जाने वाली जनता को नियंत्रित कर रहे थे. लेकिन यह सब उन्होंने बड़ी चतुराई से बाकायदा अपने-अपने देशों के कानूनों और संविधान के प्रावधानों के दायरों में रहकर किया था. आखिरकार उनमे से कई स्वयं सांसद थे और उन्होंने संविधान और कानूनों को अपने फायदे के लिए ही तैयार किया था. और इस वजह से उनके सभी कुकर्म आसानी से कानूनों और संविधान की आड़ में जायज मान लिये जाते थे.

नवीनतम आँकड़ों के रुझानों से पता चला कि इस १% में न केवल ऊपर वर्णित व्यक्तियों का समावेश था किन्तु कई अत्यंत प्रभावशाली और षडयंत्रकारी कट्टरपंथी भी शामिल थे. अतीत में इन चरमपंथियों ने मौजूदा सरकारों से सत्ता और धन हासिल करने के लिए उन्हें आतंकित किया था लेकिन हाल ही में उन्होंने सीख लिया था कि वे स्वयं कानूनी रूप से और संवैधानिक रूप से भी शीर्ष सरकारी पदों पर कब्जा कर सकते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह वर्तमान सत्ताधारियों ने किया था.

चरमपंथियों ने समझ लिया कि उन्हें बस इतना करना था कि वे आम जनता की धार्मिक भावनाओं का शोषण करें, उन सभी को समृद्धि देने का वादा करें और बदले में उनका भारी समर्थन प्राप्त करें. वे जानते थे कि लोग मौजूदा शासकों द्वारा भ्रमित महसूस कर रहे थे और इसलिए उन्हें मौका देने में लोगों को कोई परहेज नहीं होगा. उन्हें कोई फर्क नहीं पडेगा. लेकिन उभरकर आई वास्तविकता पूरी तरह से अलग थी. जहाँ कहीं इन कट्टरपंथियों ने सरकारों का गठन किया, वे राज्य और देश उतनी ही दयनीय परिस्थितियों में बने रहे जितने पहले शासकों के शासनकाल में थे.

कहते हैं कि किसी भी प्रकार की शक्ति की उन्मत्तता हर किसी को भ्रष्ट कर देती है. ऐसा ही बर्थ पर १% वालों के साथ हुआ.

ग्रह बर्थ पर यह संयुक्त १% शेष ९९% के लिए कष्टकारी और उपद्रवी बन गये थे. हर आये दिन वे हत्याओं, झगड़ों, लड़ाइयों और युद्धों की संकल्पना, योजना और संचालन करते रहते थे. वे ९९% जनता को इन सब खतरनाक तरीकों से प्रभावित करते थे. इनसे जनता ही मौत के घाट उतारी जा रही थी. दमनकारी अनुपात पर किये जाने वाले ये सारे गंदे काम केवल १% की स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करने के लिये होते थे. वे ही धन वितरण की बढ़ती असमानता का कारण भी थे. चिकनी-चुपड़ी बातों में आ जाने वाले और आश्रित इन ९९% लोगों के ज्ञान और कौशल का शोषण करके, उन्हें बदले में कम से कम मामूली धन का भुगतान करके, वे बहुत अमीर और मगरूर हो गये थे. यह अनुमान लगाया गया था कि बर्थ ग्रह पर केवल ७० सबसे अमीर व्यक्तियों ने बर्थ ग्रह की कुल संपत्ति के ७०% पर अपना स्वामित्व कर रखा था.

दुःख की बात यह थी कि ९९% शासित लोगों ने बिना किसी ज्यादा विरोध के उनके चारों ओर हो रही वारदातों और परिस्थितियों को स्वीकार कर लिया था. 

लेकिन हाल ही में दो बर्थलिंग अमर और विक्टर ने दर्शकों की तरह चुप बैठे न रहने का फैसला कर लिया. शुरुआत में वे दिन-प्रतिदिन की खूनी घटनाओं से केवल कुछ-कुछ परेशान होते थे. लेकिन अब उनका धीरज समाप्त हो गया था और उनकी परेशानियाँ भयंकर गुस्से में तबदील हो चुकी थीं.

वे दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे. उनकी बौद्धिक और भावनात्मक परिपक्वता उच्च कोटि की थी. साथ ही उनकी विशारधाराओं में कमाल की समानता थी. उन्होंने एक ही कंपनी में नौकरी की थी और वहॉँ एक दूसरे के सहयोगियों की तरह मिलकर काम किया था. अक्सर वे अपने ग्रह की खेदजनक परिस्थितियों के बारे में अपनी चिंताओं का आदान-प्रदान करने के लिए मिलते रहते थे. उनकी मीटिंग की जगह एक निर्जन और गुप्त स्थान पर थी जहाँ कोई भी उन्हें आसानी से ट्रैक नहीं कर सकता था. फिर भी वे हमेशा इस बारे में बहुत सतर्क रहते थे.

उनकी आखिरी मीटिंग तब हुई थी जब दो छोटे देशों- इसोनिया और कासबान- ने एक पवित्र शहर पर कब्जा करने के लिए एक खूनी युद्ध शुरू किया था. दोनों देश इस पवित्र शहर पर अपने स्वामित्व का दावा कर रहे थे. दोनों देशों के राजनेताओं ने इस युद्ध को उकसाया था. इस युद्ध के कारण दोनों ही देशों के निर्दोष नागरिक बहुत बड़ी संख्या में मारे जा रहे थे. हत्याएँ अभी भी जारी थीं और चारोँ तरफ अशांति ही अशांति छाई थी.

अमर और विक्टर ने उनकी आख़िरी मीटिंग के अंत में जल्दी ही फिर से मिलने का फैसला किया था.

उनकी अगली मीटिंग में वे, ग्रह बर्थ के विभिन्न हिस्सों से, उनकी सोच से मेल-जोल रखने वाले कुछ और व्यक्तियों को अपने साथ शामिल करेंगे.
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